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6 महीने के लड्डू के सिर पर इस वजह से था एक और सिर! इस तरह डॉक्टर्स ने किया इलाज

6 महीने के लड्डू के सिर पर इस वजह से था एक और सिर! इस तरह डॉक्टर्स ने किया इलाज
लड्डू की शनिवार को दिल्ली के एक अस्पताल में सर्जरी हुई है. सर्जरी करने वाले डॉक्टर्स का कहना है कि अब लड्डू पूरी तरह ठीक है और उन्हें एक-दो

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में डिस्चार्ज कर दिया जाएगा.

6 महीने के लड्डू के सिर के पीछे एक ‘सिर’ लगा था. लेकिन, अब लड्डू के सिर की सर्जरी हो गई है और परिवारों वालों के साथ डॉक्टर्स को भी उम्मीद है कि जल्द ही लड्डू दूसरे बच्चों की तरह खेलने कूदने लगेगा. दरअसल, हम आप बात कर रहे हैं 6 महीने पहले गाजीपुर में पैदा हुए एक बच्चे की, जिसका नाम है लड्डू. लड्डू के सिर के पीछे एक सिर लगा हुआ था, जो एक ट्यूमर की तरह था, जो आप ऊपर लगी फोटो में देख भी सकते हैं. हालांकि, अब लड्डू पूरी तरह ठीक है.
लड्डू की शनिवार को दिल्ली के एक अस्पताल में सर्जरी हुई है. सर्जरी करने वाले डॉक्टर्स का कहना है कि अब लड्डू पूरी तरह ठीक है और उन्हें एक-दोन में डिस्चार्ज कर दिया जाएगा. ऐसे में जानते हैं कि आखिर ये बीमारी क्या है और किस तरह से इसका इलाज किया गया…
कौन सी है ये बीमारी
दरअसल, लड्डू को जो बीमारी है, उसका नाम है एनसीफैलोसील. इस बीमारी से जूझ रहे लड्डू का जीवन खतरे में है, लेकिन दिल्ली के डॉक्टर मनीष इसका इलाज करने वाले हैं. इस बीमारी की वजह से लड्डू ना ठीक से सो पाता है और ना ही ठीक से खेल पाता है. दरअसल,जब ब्रेन का हिस्सा बाहर निकल जाए तो बच्चा इस प्रकार की बीमारी का शिकार हो जाता है. यह जन्मजात होती है.
यह बीमारी काफी रेयर होती है. कहा जाता है कि करीब 10-12 हजार लोगों में से एक किसी एक को यह बीमारी होती है. इस बीमारी को लेकर सीनियर न्यूरोसर्जन डॉक्टर मनीष कुमार ने कहते हैं कि जब मां के पेट में बच्चा बनता है तब किसी कारण वश किसी अंग के विकास में गड़बड़ी हो जाती है, जिसके बाद से इस तरह का रोग होता है. हालांकि, इसका इलाज संभव है.’
कैसे की गई सर्जरी?
लड्डू की सर्जरी करने वाले डॉक्टर मनीष ने बताया, ‘सर्जरी सक्सेसफुल रही और यह अलग तरह का अनुभव था. सर्जरी के बाद लड्डू पूरी तरह ठीक है और उन्हें दो-तीन में छुट्टी दे दी जाएगी. सर्जरी करीब 3 घंटे चली थी और लड्डू को ऑपरेशन थियेटर में करीब 5-6 घंटे रखा गया था.’
डॉक्टर के अनुसार, ‘लड्डू के सिर के पीछे जो सिर लगा था, उसमें पानी भरा हुआ था. अब इसे अलग कर दिया गया है और इसमें से करीब 1.5 किलो लीटर पानी निकला था.’ सर्जरी के बार डॉक्टर ने बताया कि इसमें गोले में दिमाग का कुछ हिस्सा होने की वजह से सर्जरी को ज्यादा ध्यानपूर्वक किया गया था. ये ट्यूमर नहीं था और अब अलग कर दिया गया है.’
बता दें कि यह बच्चा एक मजदूर परिवार में पैदा हुआ था और अभी यह 6 महीने का है. इसके इलाज में भी काफी खर्चा होने वाला है, जिसमें कुछ पैसा अस्पताल की ओर से माफ किया है. वहीं, कुछ पैसों को इंतजाम किसी संगठन ने किया है और थोड़ा पैसा परिवार ने दिया.

नजफगढ़ न्यूरो केयर सेंटर के प्रख्यात न्यूरो सर्जन डॉ मनीष कुमार ने एनसीफैलोसिल का किया सफल ऑपरेशन

प्रख्यात न्यूरोसर्जन डॉ मनीष कुमार ने एनसीफैलोसिल का किया सफल ऑपरेशन
कमलेश पांडेय/वरिष्ठ पत्रकार
# यूपी के गाजीपुर जनपद निवासी 6 माह के लड्डू के सिर के पीछे बने एक और सिर का किया सफल ऑपरेशन
# जयपुर गोल्डन अस्पताल, रोहिणी, दिल्ली में आधुनिक चिकित्सा उपकरणों से सुसज्जित ऑपरेशन थियेटर में शनिवार को किया ऑपरेशन
# ऑपरेशन के बाद बच्चा है स्वस्थ और माता-पिता प्रसन्नचित
दिल्ली/गाजियाबाद।

NAJAFGARH NEURO CARE CENTRE
A-27. LAXMI GARDEN, TUDA MANDI
NAJAFGARH, DELHI -110043

न्यूरो केयर सेंटर के प्रख्यात न्यूरो सर्जन डॉ मनीष कुमार ने शनिवार को जयपुर गोल्डन अस्पताल, रोहिणी, दिल्ली में 6 महीने के लड्डू के सिर के पीछे भी बने एक सिर का सफल ऑपरेशन किया। उनकी इस सफलता से लड्डू के आगे की परेशानी टल गई, वहीं उसके माता-पिता ने भी राहत की सांस ली है। इस बारे में पत्रकारों से बातचीत करते हुए डॉ कुमार ने बताया कि पानी से भरे इस दूसरे सिर की वजह से वह न तो ठीक से सो पाता था और न ही खेल पाता था। वहीं इसमें चोट लगने और फटने का डर भी हमेशा बना रहता था, जो ऑपरेशन की सफलता से अब दूर हो चुका है।

न्यूरोसर्जन डॉ मनीष कुमार ने बताया कि एनसीफैलोसील नामक इस दुर्लभ (रेयर) बीमारी से जूझ रहे लड्डू का जीवन खतरे में था, लेकिन दिल्ली के बड़े अस्पताल में उपलब्ध बेशकीमती चिकित्सा उपकरणों के सहारे हमने इस बच्चे की सफल सर्जरी करने की चुनौती स्वीकार की है और इसे सफल बनाने में जुट गए। पूर्व के पेशेवर अनुभवों और ईश्वर के साथ से यह कार्य पूरा हुआ।

नजफगढ़ न्यूरो केयर सेंटर के न्यूरो सर्जन डॉक्टर मनीष कुमार ने बताया कि मेडिकली इस बीमारी को एनसीफैलोसिल कहा जाता है। जिसमें एन्सेफैल का मतलब ब्रेन होता है और सील का मतलब होता है उसका बाहर निकलना। यानी जब ब्रेन का कोई हिस्सा बाहर निकल जाए तो बच्चा इस प्रकार की बीमारी का शिकार हो जाता है। उन्होंने बताया कि यह जन्मजात और दुर्लभ (रेयर) बीमारी है तथा लगभग 10-11 हजार नवजात बच्चों में से किसी एक को यह बीमारी होती रहती है, जिसका एकमात्र इलाज सर्जरी ही है। उन्होंने कहा कि सर्जरी में इस हिस्से को सफलतापूर्वक बाहर निकाल कर सिर को बंद किया जाता है। यह सर्जरी आसान नहीं है, बल्कि एक बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। लेकिन संभव है और लोग इसका फायदा उठाते रहते हैं।

डॉक्टर मनीष का कहना है कि यह ट्यूमर नहीं है, बल्कि ट्यूमर की तरह दिखता है। दरअसल, सिर के आकार के बने इस हिस्से में ब्रेन का एक छोटा सा हिस्सा है, जो हड्डी से बाहर आ गया है, जिसमें ज्यादातर पानी ही है। लेकिन सिर को जिस प्रकार से हड्डियों का प्रोटेक्शन प्राप्त होता है, इसमें वह नहीं है। इसलिए चोट लगने पर इसके फटने का डर था, जिससे बच्चे को और दिक्कत हो सकती थी।

न्यूरोसर्जन डॉ मनीष कुमार ने बताया कि यूपी के गाजीपुर इलाके में एक गरीब परिवार में लड्डू का जन्म हुआ। हालांकि, जन्म के साथ ही उसे यह परेशानी थी, जो धीरे-धीरे बढ़ती चली गई। कई जगहों पर उसके माता-पिता ने इलाज कराया। लेकिन कोई सर्जरी को तैयार नहीं हुआ। ऐसे में गाजियाबाद में एक डॉक्टर ने उनसे यानी डॉ मनीष कुमार से मिलने की सलाह दी, क्योंकि वह पहले भी इस तरह की सर्जरी कर चुके हैं।

डॉक्टर कुमार ने आगे कहा कि यह बड़ी सर्जरी थी, इसलिए जयपुर गोल्डन अस्पताल में ही किया। क्योंकि वहां समस्त आधुनिक उपकरण उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि बच्चे की एमआरआई जांच में पता चला कि उसके स्पाइन में भी यह पानी जा रहा था, जिससे हाथ पैर के मूवमेंट में दिक्कत हो सकती थी। वहीं, सिर से ब्रेन का जो हिस्सा निकला हुआ था, उसी से पानी भी बाहर निकल रहा था, और ज्यादातर पानी बाहर बने हिस्से में जा रहा था और कुछ पानी स्पाइनल कोड में जा रहा था। जो चिंताजनक बात थी। लेकिन उन्हें पूरी उम्मीद थी कि पहली सर्जरी में ही यह कवर हो जाएगा। यदि पहली सर्जरी में ठीक नहीं होता है तो 6 महीने बाद दूसरी सर्जरी करेंगे। उन्होंने बताया कि शनिवार को हुई सर्जरी सफल रही।

डॉक्टर मनीष कुमार ने कहा कि अपने देश में अक्सर लोग ऐसे बच्चों को भगवान का रूप मान लेते हैं और ऐसी बीमारी को लाइलाज समझकर इलाज नहीं कराते हैं। जबकि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसका इलाज है और सम्बन्धित इलाज के द्वारा कोई भी बच्चा सामान्य जिंदगी जी सकता है। उन्होंने बताया कि इस बात में कोई दो राय नहीं कि इस तरह की सर्जरी काफी महंगी होती है, जिसके चलते लड्डू के माता-पिता को भी परेशानी उठानी पड़ रही है। वहीं, लड्डू के पिता भी पूरी तरह से ठीक नहीं हैं और वह दाहिने पैर से हैंडीकैप हैं, लेकिन वह अपने बच्चे को अच्छा जीवन देने के लिए यह सर्जरी कराया। उनकी इस पॉजिटिव थिंकिंग यानी सकारात्मक सोच को हमें सलाम करना चाहिए और बाकी लोगों को भी ऐसी कठिन परिस्थिति में भी यही फैसला लेना चाहिए।

फोटोकैप्शन:- प्रख्यात न्यूरोसर्जन डॉ मनीष कुमार के हाथों की सफाई से लड्डू को मिली नई जिंदगी।

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6 महीने के लड्डू के सिर के पीछे बने एक और सिर के इलाज में जुटे डॉक्टर नजफगढ़ न्यूरो केयर सेंटर के न्यूरोसर्जन डॉक्टर मनीष कुमार

6 महीने के लड्डू के सिर के पीछे बने एक और सिर के इलाज में जुटे डॉक्टर: राहुल आनंद | नवभारत टाइम्स
मेडिकली इस बीमारी को एनसीफैलोसील कहा जाता है, इसमें एन्सेफैल का मतलब ब्रेन होता है और सील का मतलब उसका बाहर निकलना। यानी जब ब्रेन का हिस्सा बाहर निकल जाए तो बच्चा इस प्रकार की बीमारी का शिकार हो जाता है।
हाइलाइट्स:
6 माह के बच्चे को जन्मजात रेयर बीमारी- एनसीफैलोसीस
• लगभग 10-11 हजार नवजात बच्चों में किसी एक को होती है
• पानी से भरे इस दूसरे सिर की वजह से लड्डू सो नहीं पाता
• इसमें चोट लगने और फटने से जान का हो सकता है खतरा

नई दिल्ली
6 महीने के लड्डू के सिर के पीछे भी एक सिर बन गया है। पानी से भरे इस दूसरे सिर की वजह से वह न तो ठीक से सो पाता है और न खेल पाता है। इसमें चोट लगने और फटने का डर है। एनसीफैलोसील नामक इस रेयर बीमारी से जूझ रहे लड्डू का जीवन खतरे में है, लेकिन दिल्ली के डॉक्टर ने इस बच्चे की सफल सर्जरी करने की चुनौती स्वीकार की है और इसे सफल बनाने में जुट गए हैं।

क्या है यह बीमारी
नजफगढ़ न्यूरो केयर सेंटर के न्यूरोसर्जन डॉक्टर मनीष कुमार ने बताया कि मेडिकली इस बीमारी को एनसीफैलोसील कहा जाता है, इसमें एन्सेफैल का मतलब ब्रेन होता है और सील का मतलब उसका बाहर निकलना। यानी जब ब्रेन का हिस्सा बाहर निकल जाए तो बच्चा इस प्रकार की बीमारी का शिकार हो जाता है। यह जन्मजात और रेयर बीमारी है। लगभग 10 से 11 हजार नवजात बच्चों में से किसी एक को यह बीमारी होती है, जिसका इलाज सर्जरी ही है। सर्जरी में इस हिस्से को सफलतापूर्वक बाहर निकाल कर सिर को बंद किया जाता है। सर्जरी आसान नहीं है। यह एक चुनौतीपूर्ण है, लेकिन संभव है।

क्या है खतरा
डॉक्टर का कहना है कि यह ट्यूमर नहीं है, लेकिन ट्यूमर की तरह ही दिखता है। सिर के आकार के बने इस हिस्से में ब्रेन का एक छोटा सा हिस्सा है, जो हड्डी से बाहर आ गया है, इमसें ज्यादातर पानी ही है। लेकिन सिर को जिस प्रकार हड्डियों का प्रोटेक्शन होता है, इसमें वह नहीं है। इसलिए चोट लगने पर फटने का डर है, जिससे बच्चे को और दिक्कत हो सकती है।

डॉ. मनीष कुमार ने बताया कि यूपी के गाजीपुर इलाके में एक गरीब परिवार में लड्डू का जन्म 6 महीने पहले हुआ था। जन्म के साथ ही उसे यह परेशानी थी, जो धीरे धीरे बढ़ती चली गई। कई जगहों पर बच्चे के माता पिता ने इलाज कराया, लेकिन कोई इसकी सर्जरी को तैयार नहीं हुआ। गाजियाबाद में एक डॉक्टर ने लड्डू के माता पिता को उनसे मिलने की सलाह दी, क्योंकि वह इससे पहले ही इस तरह की सर्जरी कर चुके हैं। डॉक्टर मनीष ने कहा कि यह बड़ी सर्जरी है, इसलिए बच्चे की सर्जरी वह जयपुर गोल्डन अस्पताल में करेंगे।

डॉक्टर ने कहा कि बच्चे की एमआरआई जांच में पता चला कि उसके स्पाइन पर भी इसका असर हो रहा है। स्पाइन में भी यह पानी जा रहा है, इससे हाथ पैर के मूवमेंट में दिक्कत हो सकती है। सिर से ब्रेन का जो हिस्सा निकला है, उसी से पानी भी बाहर निकल रहा है, ज्यादातर पानी बाहर बने हिस्से में जा रहा है और कुछ पानी स्पाइनल कॉड में जा रहा है। यह चिंताजनक है, लेकिन पूरी उम्मीद है कि पहली सर्जरी में यह कवर हो जाए। अगर यह पहली सर्जरी में ठीक नहीं होता है तो छह महीने बाद दूसरी सर्जरी करेंगे। हमने सर्जरी को सफल बनाने के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी है। शनिवार को सर्जरी प्लान की गई है।
डॉक्टर ने कहा कि अपने देश में इस प्रकार की बीमारी को लेकर लोगों की जो धारणा है, वह गलत है। अक्सर लोग ऐसे बच्चे को भगवान का रूप मान लेते हैं और इलाज नहीं कराते, जबकि इलाज कराना चाहिए। क्योंकि इसका इलाज है और बच्चा अपनी सामान्य जिंदगी जी सकता है। यह सही है कि इस तरह की सर्जरी काफी महंगी होती है और लड्डू के माता पिता को भी परेशानी उठानी पड़ रही है। लड्डू के पिता भी पूरी तरह से ठीक नहीं है, वह दाहिने पैर से हैंडीकैप हैं, लेकिन, वह अपने बच्चे को अच्छा जीवन देने के लिए सर्जरी करा रहे हैं। उनकी इस पॉजिटिव सोच को हमें सलाम करना चाहिए और बाकी लोगों को भी ऐसी स्थिति यही फैसला लेना चाहिए।